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सूर्याष्टकम्

 ।। सूर्याष्टकम् ।। आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोSस्तु ते।।१।। अर्थ- हे आदिदेव भास्कर!(सूर्य का एक नाम भास्कर भी है) आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है। सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्। श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।२।। अर्थ- सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ। लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।३।। अर्थ- लोहितवर्ण रथारुढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ। त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्। महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।४।। अर्थ- जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता/करती हूँ। बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च। प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।५।। अर्थ- जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरुप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति

देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ

                             देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ 〰️〰️🔸〰️〰️🔸🔸〰️〰️🔸〰️〰️ देवी पार्वती विभिन्न नामों से जानी जाता है और उनमें से हर एक नाम का एक निश्चित अर्थ और महत्व है। देवी पार्वती से 108 नाम जुड़े हुए है । भक्त बालिकाओं के नाम के लिए इस नाम का उपयोग करते है।  1 . आद्य - इस नाम का मतलब प्रारंभिक वास्तविकता है। 2 . आर्या - यह देवी का नाम है 3 . अभव्या - यह भय का प्रतीक है। 4 . अएंदरी - भगवान इंद्र की शक्ति। 5 . अग्निज्वाला - यह आग का प्रतीक है। 6 . अहंकारा - यह गौरव का प्रतिक है । 7 . अमेया - नाम उपाय से परे का प्रतीक है। 8 . अनंता - यह अनंत का एक प्रतीक है। 9 . अनंता - अनंत 10 अनेकशस्त्रहस्ता - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 11 . अनेकास्त्रधारिणी - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला । 12 . अनेकावारना - कई रंगों का व्यक्ति । 13 . अपर्णा – एक व्यक्ति जो उपवास के दौरान कुछ नहि कहता है यह उसका प्रतिक है । 14 . अप्रौधा – जो व्यक्ति उम्र नहि करता यह उसका प्रतिक है । 15 . बहुला - विभिन्न रूपों । 16 . बहुलप्रेमा - हर किसी से प्यार । 17 . बलप्रदा - यह ताकत का दाता क

श्रीजगन्नाथ जी की आँखे बड़ी क्यों है...?

                                श्रीजगन्नाथ जी की आँखे बड़ी क्यों है?  इसके मूल में भगवान् के प्रगाढ़ प्रेम को प्रकट करने वाली एक अद्भुत गाथा है। एक बार द्वारिका में रुक्मणी आदि रानियों ने माता रोहिणी से प्रार्थना की कि वे श्रीकृष्ण व गोपियों की बचपन वाली प्रेम लीलाएँ सुनना चाहतीं हैं। पहले तो माता रोहिणी ने अपने पुत्र की अंतरंग लीलाओं को सुनाने से मना कर दिया। किन्तु रानियों के बार-बार आग्रह करने पर मैया मान गईं और उन्होंने सुभद्रा जी को महल के बाहर पहरे पर खड़ा कर दिया और महल का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया ताकि कोई अनधिकारी जन विशुद्ध प्रेम के उन परम गोपनीय प्रसंगों को सुन न सके। बहुत देर तक भीतर कथा प्रसंग चलते रहे और सुभद्रा जी बाहर पहरे पर सतर्क होकर खड़ी रहीं। इतने में द्वारिका के राज दरबार का कार्य निपटाकर श्रीकृष्ण और बलराम जी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने महल के भीतर जाना चाहा लेकिन सुभद्रा जी ने माता रोहिणी की आज्ञा बताकर उनको भीतर प्रवेश न करने दिया। वे दोनों भी सुभद्रा जी के पास बाहर ही बैठ गए और महल के द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगे। उत्सुकता वश श्रीकृष्ण भीतर चल रही वार्ता के प्र

श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा

  श्रीराधा के सोलह नामों की महिमा  जो मनुष्य जीवन भर श्रीराधा के इस सोलह नामों का पाठ करेगा, उसको इसी जीवन में श्रीराधा-कृष्ण के चरण-कमलों में भक्ति प्राप्त होगी । मनुष्य जीता हुआ ही मुक्त हो जाएगा । श्रीराधा का सोलह (षोडश) नाम स्तोत्र भगवान नारायण ने श्रीराधा की स्तुति करते हुए उनके सोलह नाम और उनकी महिमा बतायी है— राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी। कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रिया कृष्णस्वरूपिणी।। कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी ।  कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी ।।  चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना ।  नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च ।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्मखण्ड, १७।२२०-२२२)   श्रीराधा के सोलह नामों का रहस्य और अर्थ श्रीराधा के इन सोलह नामों का रहस्य और अर्थ भगवान नारायण ने नारदजी को बताया था जो इस प्रकार हैं– १. राधा–‘राधा’ का अर्थ है—भलीभांति सिद्ध । ‘राधा’ शब्द का ‘रा’ प्राप्ति का वाचक है और ‘धा’ निर्वाण का । अत: राधा मुक्ति, निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं ।  २. रासेस्वरी–वे रासेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया अर्धांगिनी हैं, अत: ‘रासे

विष्णु सहस्रनाम मंत्र के लाभ

 * विष्णु सहस्रनाम मंत्र और इसके लाभ ::-* ∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆ विष्णु सहस्रनाम एक ऐसा मंत्र है जिसमें विष्णु के हजार नामों का सम्मिश्रण है अर्थात अगर कोई व्यक्ति भगवान विष्णु के हजार नामों का जाप नहीं कर सकता है तो वह इस एक मंत्र का जाप कर सकता है। इस एक मंत्र में अथाह शक्ति छिपी हुई है जो कलयुग में सभी परेशानियों को दूर करने में सहायक है। *विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत्र मंत्र :-* ********************* *नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।* *सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नमः।।* 💐💐💐💐💐💐💐💐 *शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है ये मंत्र :-* --------------------------------------- इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दू धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय शैव और वैष्णवों के मध्य यह सेतु का कार्य करता है। *विष्णु सहस्रनाम में विष्णु को शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र के नाम से सम्बोधित किया है, जो इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि शिव और विष्णु एक ही है।* विष्णु सहस्रानम में प्रत्येक नाम के एक सौ अर्थ से कम नहीं हैं, इसलिए यह एक बहुत प्र

ब्राह्मण के प्रकार

 🔥 *ब्राह्मण के दश प्रकार* 🔥 *जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः*  - अत्रि स्मृति १३८ ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है।  भले ही वो नीच कार्य भी क्यों न करें वह अंत तक ब्राह्मण ही रहेगा। महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणो का कर्म अनुसार विभाग किया है। *देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ॥* *पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥* - अत्रि स्मृति ३७१ देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ॥ ३७१ ॥ १.देव ब्राह्मण -  ब्राह्मणोचित श्रोत स्मार्त कर्म करने वाला हो  २. मुनि ब्राह्मण - शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला ३. द्विज ब्राह्मण - वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु ४. क्षत्रिय ब्राह्मण - युद्ध कुशल हो ५. वैश्य ब्राह्मण - व्यवसाय गोपालन आदि ६. शुद्र ब्राह्मण - लवण,लाख,घी,दूध,मांस आदि बेचने वाला ७. निषाद ब्राह्मण - चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो ८. पशु ब्राह्मण - शास्त्र विहीन हो किन्तु मिथ्याभिमान हो ९. म्लेच्छ ब्राह्मण - बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला १०. चांडाल ब्राह्मण - अकर्मी, क्रियाहीन

हनुमान चालीसा का महत्व

 हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्त करता है। हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है। 19 बार हनुमान चालीसा का जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है। मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है। भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है। राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्योंकि वे भगवान श्री राम जी से सबसे अधिक प्रेम करते हैं। यदि आप एक विशेष दोहा का जप करते हैं बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार यदि आप अध्ययन से पहले 11 बार इस दोहा का जप करते हैं, तो 27 दिनों से पहले अध्ययन के प्रति आपकी एकाग्रता बढ़ेगी भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जु नाम सुनावे अगर आप इस श्लोक